अरुण कोलाटकर
साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला
तितली
उसके पीछे कोई कहानी नहीं है
वह क्षण सा बँटी हैं
अपने चारों ओर घुमती हैं
इसका कोई भविष्य नहीं हैं
यह किसी भूत में बंधा नहीं हैं
यह वर्त्तमान पर यमक हैं
यह छोटी सी पीली तितली हैं
जिसने दुखी पहाड़ों को
अपने परों मैं उठाई हैं
चुटकी भर पीली यह
खुलने से पहले बंद होती हैं
बंद होने से पहले खुलती हैं
कहाँ हैं वो ?
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