मलयालम : टी पी राजीवन
अनुवाद : संतोष अलेक्स
कौव्वा
एक बार एक कौव्वा
पीपल के पेड़ पर बैठा था
उसे दूर रेगिस्तान में
मिटटी का एक घड़ा नजर आया
घड़े के गोलाई पर बैठ
उसने स्वच्छ पानी को देखा
लेकिन पी नहीं सका
उसने छोटे छोटे शब्दों को चुन
एक एक कर घड़े में डाला
खून उचल आया
कौए ने जी भर कर पिया
और खुश होकर उड़ गया
Great
ReplyDeletethan u kalpana ji
ReplyDelete